-भाग्यतुषार
(अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र)
प्रेम के माइने आज बदल गए है. युवाओका जीवन के प्रति व्यक्त होनेवाली भावनाओका नजरिया आज एक विचित्र तरीकेसे व्यक्त होता है. भगतसिंह आये, अन्ग्रेजोके विरुद्ध युद्ध किया और हस्ते हुए फासी चढ़ गए. अपनी युवा अवस्थामे इस तरह हस्ते हूए फासी चढ़ जाना....बहोतही गंभीर और धेयनिष्ठा का एक तेजस्वी प्रमाण है. अपने व्यक्तिगत जीवनमें इस तरह निर्मोही रहना और बस अपने धेय के बारेमे इतना गंभीर रहना एक संशोधन का विषय है. कहासे ये सब गंभीरता आती है... हिमालयकी तरह अचल धेयनिष्ठा जीवित होती है... कहा से ?? ये सिर्फ देश के प्रति प्रेम या आदर से उत्पन हुई बात नहीं है. मूलत अपने काम के प्रति, अपने धेय के प्रति, अपने विचारो के प्रति एक सम्मति रखना और उसका पालन करना यही है इस स्वाभाव का आसली कारन.
हमें देश चाहिए, उससे उत्पनहुई सुविधा भी चाहिए पर सब वेदनारहित होना चाहिए. हमें देशसे प्रेम है, उसका आदरभी है पर वो सब हमारा सामाजिक जीवन है. व्यक्तिगत जीवनमें हमें हमारा परिवार सबकुछ है, उनकी भलाही हमारी ख़ुशी है. ये सोच अच्छी है... पर राष्ट्रीय नहीं है... राष्ट्रके नजरियेसे ये एकदम संकुचित और स्वकेंद्रित सोच है. इस सोच से तो आपका कल्याण होगा पर राष्ट्रका नहीं. राष्ट्रहित और राष्ट्र सम्मान बस भावनाओमे व्यक्त करनेसे उसकी पुर्तता संभव नहीं है. उसे सामाजिक जीवनमे आचरित करनाभी जरुरी है.
व्यक्तिगत जीवन में उत्पन होने वाली भावनाओका परिनाम अगर आपके सामाजिक और राष्ट्रीय विचारोको खंडित करता हो तो वह व्यक्तिगत भावना अराष्ट्रीय सिद्ध होती है. हम इतने स्वार्थी न होजाये की अपनी सोचसेही अपना भविष्य एक भयानक स्वप्न बना दे. हम अपने देशसे प्रेम करते है पर उस प्रेम को... उस आदर को.. उस विचार को अचल रखना एक अग्निपरीक्षासे कम नहीं है. व्यक्तिगत जीवन जीना कोई दोष नहीं है पर वह जीते समय अपने सामाजिक जीवन का मूल्य और उसका ऐहसास रखना हमारा कर्तव्य है. ये देश बहुत सुन्दर है, बहुत विशाल है.... और हमारे व्यक्तिगत जीवनका एक अंगा है ये कभी न भूले. अपने व्यक्तिगत जीवन में घटित हुई घटनाओका सीधा या किसी तरह का विपरिक परिणाम अगर इस राष्ट्र के हित को बाधित करता है तो ये एक गंभीर अपराध है.
आपने धेयसे अचल रहन एक चुनौती है पर इस भारतवर्षके संस्कारोमें ये मुलतः है. धेयानिष्ठा हमारी एक खूबी है... हमारी पहचान है... हमारा एक संस्कार है. इस लिये धेय कोई भी हो उसे अपना संस्कार बनाये... समझे. इस लेख की उत्पति मेरे स्वअनुभव की देन है. मेरे व्यक्तिगत करानोसे मैंने इस राष्ट्रका.... मेंरे राष्ट्रीय कार्यका जो कुछ नुकसान किया उसका यह प्रयाच्षित नहीं पर निश्चित उसकी एक शुरवात है.
वन्देमातरम !!
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