Sunday, March 20, 2011

जीवन समावेशक राष्ट्रवाद !

-भाग्यतुषार
(अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र)


(भाग १)
शीर्षक को पढकर थोडी विचित्र भावना उत्पन्न होणा स्वाभाविक है. तो पहले मै इसका विस्तार करता हू. ‘जीवन समावेशक राष्ट्रवाद’ इसका अर्थ माने... जिस जीवन मे राष्ट्रवाद... उसकी आसक्ती... उसका  वर्तमान और भविष्य.... साथहि उसका ध्येय अनुकरण स्वभाव है. आम धारानसे विपरीत यह राष्ट्रवाद थोडा और विस्तीर्ण स्वरूप धारित करता है. हमे राष्ट्रवाद कि अनेक धरणाये प्राप्त है. उनमे राष्ट्रवाद भौतिक, अध्यात्मिक और व्यक्तिगत जैसे विभिन्न अन्गोसे व्यक्त होता है. पर इसमे हर एक राष्ट्रवाद आपनी एक अलग भूमिका धारण किये है. कोईभी राष्ट्रवाद दुसरे धरणाको सीधे तोर से स्वीकार नाही करता, करता है तो कुच्छ हि स्वीकारता है जो कि उसकी धार्नाको कोई घात नाही करती. पर यह भी सत्य है कि सारी धरणओको एक विस्तारीक और एकत्रित स्वरूप देना और उसे सामाजिक बनाना एक शिवधनुष है, जो इस राष्ट्र के कैई महापुरुषोकोभी धारण नाही हो सका.
हमारा राष्ट्रवाद एक सांकृतिक राष्ट्रवाद है पर उसके अनेक स्वरूप आज समाज मे विभिन्न स्तरोपर अलग अलग स्वरूप मे स्थापित है. उस समाज का धारण किया गया वह स्वरूप उसकि सामाजिक और राष्ट्रीय पहचान बन जाती है. पर यह पहचान इस राष्ट्रके राष्ट्रवाद को हमेशासे घातक और द्विभाजी करतीरहि है. आपना स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करणे हेतू हर समाज आपनी संकृतीको आपनी एक कडवी पहचान बनदेता है. इस कारण वह खुदको एक व्यापक समाज का और उससे व्यापक संकृतिका अंग बना हि नाही पात जो कि वह मुलता होता है. और याही से मेरे इस       “ जीवन समावेशक राष्ट्रवाद ” कि शुरुवात होती है.
क्रमश: