Friday, February 18, 2011

नमो शिवराय !!

वंदेमातरम्‌ ! नमो शिवराय !!
शिवछत्रपती, महाराष्ट्रच नव्हे तर या संपूर्ण भारत वर्षाचे मानबिंदू...प्रेरणा...आदर्श असे अनेक काही आहेत ! जे आहेत ते उत्तम आहे... चांगले आहे... सफल आहे पण...आचरणात किती हाच खरा प्रश्न आज शिवजयंतीला मनात येतो. आम्हाला शिवरायांबद्दल आदर आहे...अभिमान आहे... पण पुढे काय ? त्याच करायचं काय ? नुसता व्यर्थ अभिमान आणि त्यातून येणारी व्यर्थ चेतना या दोन्ही गोष्टी निरुपयोगी आहेत. नुसती भाषणे....नुसती व्याख्याने आणि पोवाडे याने शिवकार्य कदापी शक्य नाही.
शिवनीती...शिवकार्य हा फक्त अभिमानाचा, पोवाड्याचा आणि त्यातून निर्माण होणाऱ्या तात्पुरत्या चेतनेचा विषय नाही. ह विषय आहे अचरणाचा... कार्याचा ! सामाजिक जीवनात शिवजयंती साजरी करायची आणि घरी गेल्यावर तर काय ‘हम भले और हमारा घर भला’. हि गोष्ट नाही चालणार. कधीच नाही चालणार !! तेव्हा शिवजीमहाराजांना रंजक इतिहासातून बाहेर काढले पाहिजे.
आयुष्भर तळ हातावर प्राण घेऊन हा माणूस रक्ताच पाणी करत होता ते देशद्रोही...धर्मद्रोही यांच्या विरुद्ध लढण्यासाठी. तेव्हा आता तरुणांनी आज होणारी ‘स्व’ त्वावरची आक्रमणे ओळखावीत व त्या विरुद्द काम सुरु करावे. केवळ इतिहास चघळत बसू नये. आपणास असे महाराज पचत नसतील तर इतर आदर्श घ्यावेत... भारतात ते भरपूर आहेत. उगीच ‘ आधुनिक ‘ शिवभक्त होऊन ‘ महाराज ‘ विषयाची तीव्रता, त्याचे तेज कमी करू नये. ‘ शिवराय ‘ या नावाच्या वाटे जाऊ नये. आणि जर आदर्श घ्यायचा असेल तर हळहळने सोडावे, रडगाणी बंद करावी (मला कॉलेज आहे... मला क्लास आहे..अशी पुळचट कारण देऊ नये) सहानुभूतीची अपेक्षा सोडावी- व ‘स्व’यम्भू व्हावे – स्वतःला प्रश्न विचरणे सुरु करावे –सगळ सांभाळून शिवाजी महाराजांची जास्तीत जास्त तसबीर घेता येते आदर्श नाही !!
छातीत निर्भय श्वास दे
साथीस कणखर हात दे
फुत्कारणाऱ्या संकटाना
ठेचनारे पाय दे....
छातीत निर्भय श्वास दे..!!!

(याहुनी करावे विशेष... तरीच म्हणवावे पुरुष !!)
प्रकाशक: अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र प्रदेश
(anpresponse@gmail.com)

Monday, February 7, 2011

भगतसिंह आसानीसे नहीं आते...

-भाग्यतुषार   
(अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र)


प्रेम के माइने आज बदल गए है. युवाओका जीवन के प्रति व्यक्त होनेवाली भावनाओका नजरिया आज एक विचित्र तरीकेसे व्यक्त होता है. भगतसिंह आये, अन्ग्रेजोके विरुद्ध युद्ध किया और हस्ते हुए फासी चढ़ गए. अपनी युवा अवस्थामे इस तरह हस्ते हूए फासी चढ़ जाना....बहोतही गंभीर और धेयनिष्ठा का एक तेजस्वी प्रमाण है.  अपने व्यक्तिगत जीवनमें  इस तरह निर्मोही रहना और बस अपने धेय के बारेमे इतना गंभीर रहना एक संशोधन का विषय है. कहासे ये सब गंभीरता आती है... हिमालयकी तरह अचल धेयनिष्ठा जीवित होती है... कहा से ??  ये सिर्फ देश के प्रति प्रेम या आदर से उत्पन हुई बात नहीं है. मूलत अपने काम के प्रति, अपने धेय के प्रति, अपने विचारो के प्रति एक सम्मति रखना और उसका पालन करना यही है इस स्वाभाव का आसली कारन.


हमें देश चाहिए, उससे उत्पनहुई सुविधा भी चाहिए पर सब वेदनारहित होना चाहिए. हमें देशसे प्रेम है, उसका आदरभी है पर वो सब हमारा सामाजिक जीवन है. व्यक्तिगत जीवनमें हमें हमारा परिवार सबकुछ है, उनकी भलाही हमारी ख़ुशी है. ये सोच अच्छी है... पर राष्ट्रीय नहीं है... राष्ट्रके नजरियेसे ये एकदम संकुचित और स्वकेंद्रित सोच  है.  इस सोच से तो आपका कल्याण होगा पर राष्ट्रका नहीं. राष्ट्रहित और राष्ट्र सम्मान बस भावनाओमे व्यक्त करनेसे उसकी पुर्तता संभव नहीं है. उसे सामाजिक जीवनमे आचरित करनाभी जरुरी है.


व्यक्तिगत जीवन में उत्पन होने वाली भावनाओका परिनाअगर आपके सामाजिक और राष्ट्रीय विचारोको खंडित करता हो तो वह व्यक्तिगत भावना अराष्ट्रीय सिद्ध होती है. हम इतने स्वार्थी न होजाये  की अपनी सोचसेही अपना भविष्य एक भयानक स्वप्न बना दे. हम अपने देशसे प्रेम करते है पर उस प्रेम को... उस आदर को.. उस विचार को अचल रखना एक अग्निपरीक्षासे कम नहीं है. व्यक्तिगत जीवन जीना कोई दोष नहीं है पर वह जीते समय अपने सामाजिक जीवन का मूल्य और उसका ऐहसा रखना हमारा कर्तव्य  है. ये देश बहुत सुन्दर है, बहुत विशाल है.... और हमारे व्यक्तिगत जीवनका एक अंगा है ये कभी न भूले. अपने व्यक्तिगत जीवन में घटित हुई घटनाओका सीधा या किसी तरह का विपरिक परिणाम अगर इस राष्ट्र के हित को बाधित करता है तो ये एक गंभीर अपराध है.


 आपने धेयसे अचल रहन एक चुनौती है पर इस भारतवर्षके संस्कारोमें ये मुलतः है. धेयानिष्ठा हमारी एक खूबी है... हमारी पहचान है... हमारा एक संस्कार है. इस लिये धेय कोई भी हो उसे अपना संस्कार बनाये... समझे. इस लेख की उत्पति मेरे स्वअनुभव की देन  है. मेरे व्यक्तिगत करानोसे मैंने इस राष्ट्रका.... मेंरे राष्ट्रीय कार्यका जो कुछ  नुकसान किया उसका यह प्रयाच्षित नहीं पर निश्चित उसकी एक  शुरवात  है.


वन्देमातरम !!

Wednesday, February 2, 2011

और बोहत 'राजा' बचे है..!!!

    अंततः रजा की गिरफ़्तारी संभव हो ही गई.पर प्रश्न ये आता है की अभी बहोत रजा बाकि है. जमीन से लेकर इस देश की वायु में मौजूद असंख्य रजा आज हिंदुस्तान में खुले आम घूम रहे है.
बस उन्हें कोई गिरफ्तार नहीं करता क्युकी उनका कोई एक चेहरा नहीं है. इस सरकार में, इनके अस्तित्व की हर अंश में ऐसे अनगिनत रजा भरे पड़े है. ये हिंदुस्तान का एक भीषण वास्तव है की
सामान्य आदमी ये सब असानिसे भूल जाता है और फिरसे उसपर ही अपने मतोका विचार करता है. जो भी हो रजा गिरफ्तार होगया.
     पर कब तक ??  ये सब से बड़ा प्रश्न है. में इस पर और जादा नहीं लेख सकता क्युकी इस केस का कोई भविष्य नहीं है. बस कुछ दिन ये नाटक चलेगा फिर कोई नया मुद्दा सामने आएगा और फिर कोई चर्चा... यही है भारतीय संविधानिक राजनीती....

-भाग्यतुषार