- भाग्यतुषार
(अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र)

ऐसेहि एक व्यक्ती है डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर. एक ‘ उच्च शिक्षित दलित ’ यह विशेषण बहोत कुच्छ बया करता है. उस समया इसके बोहोत माईनेथे हर एक दलित वर्ग का व्यक्ती इस महापुरुष से अनगिनत अशाए लागाये हुयेथा. इनसबको पूरा करना और उने वास्तवमें स्थापित करना एक असंभाही नहीं नामुमकिन था. कोए सोचभी नहीं सकताथा की एक दलित वर्ग का आदमी मंदिरमे जाकर पूजा भी करेगा... भारत का मंत्री भी होगा... बाप रे बहोत भयानक कल्पना थी. पर इस कल्पनाको वास्तव बनाया बाबासाहेबने. संघर्ष के सत्य मायेने वास्तव मे अपनाये बाबासाहेबने... जिये और जीना सिखाये. हक नाही मिलता तो उस्केलीये संघर्ष करो... लढो... यह संघर्ष युगोका हो या सालो का हो या एक दिन हो पर ये संघर्ष जरुरी है... ये हमरे अस्तित्व का संघर्ष है.. इसे जिओ इसे अपनो... इसे तबतक जीवित रखो जबतक आपके अस्तित्वाको न्याय नाही मिलता. आपके संघर्ष को एक अर्थ है, उसे और उसके हर एक क्षण का एक महत्व है.
हम इन्सान है और हमें इसके हर एक क्षण को और अंग को हक़ से जीनेका अधिकार है और इस अधिकारसे हमें कोईभी वंचित नहीं रखसकता. इस एक साधारण पर वास्तव में असाधारण स्वप्न को वास्तवमे सही अर्थमे निर्माण किया. जाती नामक भीषण राक्षश को संघटित स्वरूपमे टक्कर देकर संघर्षकी और बदलाव की मानसिकता एक पिछड़े, दबे और स्वाभिमान खोचुके समाज में निर्माण की. उन्हें एक मार्ग दिखाया. बदलाव का, मनुष्य जीवन का. आज इसी वास्तव का ज्ञान ही समज भूल चूका है. याद है पर बस लब्जोमे, पुस्तकोमे और जितिनिहाय व्यर्थ अभिमान में. इसी चीज़ से आज भीमा का स्मरण करंभी उचित नहीं लगता और वेदानादिए होता है. जिस धेय के प्राप्ति केलिए जीवनपट ही के संघर्षपट बनादिया उसी धेय का अनुकरण और स्मरण समाज आज नहीं करता इसका दुःख करन व्यर्थही नहीं उस धेय का अपमान है. और इसका जिमेदार हमारा समाज है. कितने बेशरम है हम.... इस लेख का अर्थ कृपया जरा सोचिये... आपके उत्तर के प्रतीक्षा मे....
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